Views
जनजातिये समाज संकट के दौर से गुजर रहा: सुजाता
03/02/2018 - उदयपुर। “ आदिवासी समाज कई ऐतिहासिक और भूगोलिक कारणों से हाशिये का शिकार रहा है। जिसके कारण उससे मानवी सभ्यता के विकास के फलों का लाभ नहीं ले पाया है। वैज्ञानिक और तकनीकी विकास ने आदिवासी समाज और अन्य समाजों के बीच विद्मान दूरियों क कम किया है। जिसके चलते दोनों समाजों के बीच परस्पर लेन – देन की प्रक्रिया तेज हुई है। जिसने जनजातिये समाज को कई दृष्टि से नकारात्मक रुप से प्रभावित किया है। सरकार की नीतियां इसके लिए जिम्मेदार है, विकास के नाम पर उनके प्राकृतिक संसधानों और आजिविका के तमाम तरह के स्त्रोतों की लूट की जा रही है। जिसका परिणाम विस्थापन, बैरोजगारी और अभावों से परिपूर्ण दुनिया बन गई है। “ ये विचार मोनहनलाल सुखाडिया विश्व विद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग द्वारा “आदिवासी समाज के दाशर्निक आयामों “ पर आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में नई दिल्ली से आई मुख्य अतिथि प्रो.सुजाता मिरी ने अपने उद्बोदन में रखे। उन्होंने आदिवासी समाज के विभिन्न पक्षों पर अपने चित्र कला के माध्यम से आदिवासी दुनिया को रेखांकित किया। उन्होंने मानव ईश्वर प्राकृति के अतूलनीय सामंजस्य को सामने रखा। तथा उनकी संस्कृति की विभिन्नता पर अपने विचार व्यक्त किये। संगोष्टी के मुख्य वक्ता अरुणाचल प्रदेश के प्रो. एम.सी बेहरा ने अपने उद्बोदन में बताया कि आदिवासी एक धर्म है, और इनका दर्शंन ,व्यक्ति के ज्ञान में अभिवृद्धि करता है। उन्होंने अपने वक्तव्य में आदिवासी समाज के वर्तमान परिपेक्ष्य में दर्शन के महत्व को उजागर किया। साथ ही उन्होंने पश्चिमी दर्शन की धारणा में सर्वचेतनावाद के विचार की मान्यता से अवगत कराया है, जिसमें मनुष्य ही नहीं प्राणी मात्र की सत्ता भी विद्यमान रहती है। मानवशास्त्रीय विभाग उदयपुर से आए डॉ. बी.के मोहन्ती ने अपने संबोधन में उत्तर पूर्वी भारत के विशेषकर उडीसा राज्य के आदिवासी समाज पर व उनके जीवन दर्शन को लेकर अपने विचार व्यक्त किये। उन्होंने बताया कि अंधिकाश क्षेत्रों में आज भी शिक्षा का स्तर काफी नीचे है। उन्होंने आशा जताई है कि आगे भविष्य में उनके जीवन स्तर में बदलाव आने की संभावना है। सुखाडिया कला महाविद्यालय की डीन प्रो. साधना कोठारी ने अपने अध्यक्षीय वक्तवय में आदिवासी समाज की वर
By : Suresh Lakhan