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मोतियाबिंद के ऑपरेशन में अब न टांका न इंजेक्शन

कई नए अचंभित करने वाले तकनीकी पहलुओं पर चर्चा
कॉम्प्लीकेटेड मामलों में उपचार की नई दस तकनीक

10/09/2018 - उदयपुर। अलख नयन मंदिर आई इंस्टीट्यूट एवं उदयपुर ऑप्थेल्मोलोजी सोसायटी की ओर से आई इंस्टीट्यूट प्रताप नगर में आयोजित लाइव कार्यशाला में अलख नयन मंदिर आई इंस्टीट्यूट के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. एल.एस. झाला ने कहा की मोतियाबिंद के उपचार में अब न टांके की जरूरत पड़ती है ना ही इंजेक्शन लगाना पड़ता है। इस सर्जरी में इतना ज्यादा परफेक्शन आ चुका है कि ऑपरेशन के बाद चश्मे की भी कोई जरूरत नहीं पड़ती। यह सब संभव हुआ है नेत्र चिकित्सा के क्षेत्र में उपलब्ध नई तकनीकों तथा अनुभवी व दक्ष चिकित्सकों के अथक परिश्रम के बलबूते पर। जिन नई तकनीकों से आज अमेरिका, यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया सहित अन्य माहद्वीपों के हाइटेक समझे जाने वाले देशों में उपचार हो रहा है, वे सभी उदयपुर के अलख नयन मंदिर में उपलब्ध है।
कार्यशाला के पहले सत्र में नामी चिकित्सक-सर्जन ने तकनीकी नावोन्मेष की चर्चा करते हुए लाइव सर्जरी की। मुंबई के बॉम्बे सिटी आई इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर के सर्जन डॉ. सोमिल कोठारी, एयूवीआई आई हॉस्पिटल कोटा के डॉ. सुरेश पांडे, अलख नयन मंदिर के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. एल.एस. झाला, अलख नयन के रेटिना सर्जन डॉ. साकेत आर्य, आरएनटी मेडिकल कॉलेज में डिपार्टमेंट ऑफ आप्थेल्मोलॉजी के एचओडी डॉ. अशोक बैरवा आदि ने लाइव सर्जरी के माध्यम से कई नई उपचार विधियों तथा तकनीकी पहलुओं पर प्रतिभागी देशभर से आए चिकित्सकों के समक्ष विचार व्यक्त किए।
डॉ. झाला ने बताया कि विभिन्न प्रकार के ऑपरेशनों के दौरान प्रतिभागी चिकित्सक कई नई सूचनाओं से उद्दीप्त हुए। उन्होंने बताया कि अब मल्टीफोकल लेंस के मदद से ऑपरेशन के बाद चश्मे पर निर्भरता समाप्त हो गई है। लाइव ऑपरेशन करते हुए उन्होंने बताया कि जिन मामलों में आंखों में लेंस रखने की जगह नहीं होती वहां अब स.एफ.आई.ओ.एल लेंस को बिना टांके के आंख में टनल बनाकर जमा देते हैं। उन्होंने कहा कि आजकल प्री लोडेड लेंस भी काम में लिए जा रहे हैं। अल्ट्रासर्ट लेंस को छोटे से चीरे से ही प्रेस करके आंखों में बड़ी आसानी से फिट करने की भी लाइव सर्जरी की गई। सर्जरी के दौरान एक्रीसॉफ्ट आईक्यू नामक लेंस भी गया। इस ऑपरेशन की विशेषता यह है कि इसमें ऑपरेशन के बाद लेंस के पश्र्व में झिल्ली बनने की समस्या से छुटकारा मिल जाता है। कार्यशाला में लेंस में पावर डालने की आधुनिक मशीनों का भी जिक्र हुआ जिसमें लेंस स्टार वेरिओन सिस्टम से मरीज की आंखों के पैरामीटर को नाप कर लेंस की एक्यूरेसी माप ली जाती है। उसी केे अनुरूप जो लैंस तैयार होता है उसमें ऑपरेशन के बाद चश्मा लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। दूूसरे सत्र में हिलटॉप होटल में नई मशीनें, वल्र्ड टेक्नोलॉजी व कॉप्लीकेटेड सिचुएशन को डील करने आदि पर चर्चा की गई।
कोठारी आई के डॉ. अनिल कोठारी ने ऑपरेशन के बाद भी कई बार नंबर आ जाने की समस्या तथा उसके बाद की चिकित्सा को प्रबंध करने की विधि बताई। डॉ. सोमिल कोठारी ने फेको सेंचुरियन विधि के माध्यम से उपचार तकनीक को समझने व नए तकनीकी पक्षों पर विस्तार से चर्चा की। झाला ने कॉम्प्लीकेटेड मामलों में उपचार की नई दस तकनीकों के बारे में बताया।


By : Suresh Lakhan

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