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कार्डियक कांफ्रेंस में जुटे देश के ख्यातनाम हृदयरोग विशेषज्ञ

भारत हार्ट अटैक के मामलों में अभी सबसे ऊपर है
माता-पिता का लाड बच्चों में बढ़ा रहा कोलेस्ट्रोल

19/11/2018 - उदयपुर। हार्ट एवं रिद्म सोसायटी की ओर से दो दिवसीय द फर्स्ट कार्डियक कांफ्रेंस में देशभर के 200 से अधिक हृदयरोग विषेशज्ञ व फिजिशियन जुटेे। कांफ्रेंस में हृदय रोग के उपचार में अपनाई जा रही अत्याधुनिक व नई तकनीक एवं उपचार के तरीकों के आदान-प्रदान पर मंथन हुआ। डॉ. अमित खंडेलवाल के अनुसार महात्मा गांधी हॉस्पीटल, जयपुर के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. दीपेश अग्रवाल ने बच्चों को मोटा-ताजा बनाने के लाड में माता-पिता उन्हें इतना खिलाना-पिलाना शुरू कर देते हैं कि कम उम्र में ही उनके हृदय की नसों में कॉलेस्ट्रोल जमना शुरू हो जाता है। चूंकि बच्चों का एक्टिविटी लेवल काफी ज्यादा होता है इसलिए कोई भी चीज लिमिट से ज्यादा होने पर उनके लिए नुकसानदायक साबित होती है। मुंबई से आए इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. निमित शाह ने आईवीयूएस व रोटा एब्लेशन तकनीक से एंजियोप्लास्टी के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि आईवीयूएस से हार्ट की धमनी के अंदर ब्लॉकेज, धमनी की मोटाई और ब्लॉकेज की स्थिति के साथ उसमें लगने वाले स्टंट व बैलून की साइज का पता चलता है। इसका पता अल्ट्रासाउंड से लगाया जाता है। रोटा एब्लेशन ब्लॉकेज में जमा कैल्शियम को तोड़ने का काम करती है। इससे धमनी में जमा कैल्शियम हटने से ब्लॉकेज छोटा रह जाता है। उसके बाद की गई सटीक एंजियोप्लास्टी से मरीज के हार्ट की नाड़ी के दूरगामी परिणाम बेहतर हो जाते है। वडोदरा के डॉ. शोमू बोहरा ने ईसीजी के बारे में क्वीज के जरिए दिल की बीमारियों की बारिकियों को समझाया। उन्होंने बताया कि हार्ट बीट कम होने की स्थिति में पेसमेकर डाला जाता है। आम तौर पर इसकी जरूरत पचास साल बाद के रोगी में होती है, लेकिन कम उम्र के बच्चों में धड़कन कम होने पर भी इसका उपयोग होने लगा है। पैर के रास्ते डाला गया पेसमेकर भी काफी कारगर साबित होता है।
कांफ्रेंस में एम्स, जोधपुर के डॉ. सुरेंद्र देवड़ा एवं डॉ. साकेत गोयल ने हाई ब्लड प्रेशर के कारणों एवं उनके उपचार के बारे में समझाया। मैक्स हॉस्पीटल, नई दिल्ली के डॉ. मोहन भार्गव एवं बंगलुरु से आए डॉ. नवीन चंद्र ने पैर की धमनियों में खून के थक्के (डीवीटी) जमने के कारणों एवं उसके उपचार के बारे में बताया। उन्होंने उससे होने वाली जानलेवा बीमारी पल्मोनरी एंबोलिज्म के बारे में जानकारी दी। वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. एसके कौशिक ने हार्ट अटैक के प्रमुख कारणों एवं उनके अत्याधुनिक तकनीक से उपचार के बारे में बताया। डॉ. नगेंद्र एस चौहान ने एंजियोप्लास्टी की आधुनिक तकनीक ओसीटी एवं एफएफआर के बारे में जानकारी दी। समापन सत्र के मुख्य अतिथि डॉ. एचके बेदी थे।
कम उम्र में हार्ट अटैक भारत में अधिक: डॉ. पुंटो मुंबई में होली फैमिली हॉस्पिटल में कार्डियक विभाग के डायरेक्टर एवं विभागाध्यक्ष डॉ. ब्रियान पूंटो ने कहा कि सडन डेथ का शिकार सर्वाधित युवा होते हैं। बढ़ते तनाव से उनकी जीवनशैली भी अव्यवस्थित हो गई है। मोटापे के कारण ट्राईग्लिसराइड्स और एलडीएल (बैड कोलेस्ट्रॉल) का स्तर बढ़ जाता है। इससे भी सडन हार्ट अटैक हो जाता है। उन्होंने संवाददाताओं के सवाल-जवाब में कहा कि हार्ट पूरे शरीर को आॅक्सीजन और पोषक तत्व सप्लाई करता है। इसलिए इसका स्वस्थ रहना जरूरी है लेकिन कई कारण हैं, जिनसे हार्ट को फंक्शन करने में परेशानी होती है, उनमें मोटापा, तनाव, कोलेस्ट्रोल का बढ़ना, धमनियों में कैल्शियम जमना, ट्राइग्लिसराइड का बढ़ना है। मोटापा भी हार्ट अटैक की वजह बनता है। मोटापे के कारण ट्राईग्लिसराइड्स और एलडीएल (बैड कोलेस्ट्रॉल) का स्तर बढ़ जाता है,धमनियां संकड़ी हो जाती हैं, ब्लड प्रेशर ज्यादा हो जाता है। यही हार्ट अटैक का प्रमुख कारण है।
भारत हार्ट अटैक के मामलों में अभी सबसे ऊपर है। विदेशों में हार्ट अटैक की उम्र भारत से 10 वर्ष से कम है। सडन डेथ के मामलों में कार्डियक कम्प्रेशन देना चाहिए। इसके लिए जगह-जगह कक्षाएं लगानी चाहिए। लोगों में जागरूक करना चाहिए। कार्डियक कम्प्रेशन तब तक दें जब तक डिफिब्रिलेटर नहीं मुहैया हो जाए।
अचानक नहीं होता हार्ट अटैक, लक्षण पहले से होते हैं : डॉ. कौल बत्रा हार्ट सेंटर, नई दिल्ली के डायरेक्टर डॉ. उपेंद्र कौल का कहना है कि सडन हार्ट अटैक अकस्मात होता जरूर है लेकिन इसके लक्षण कहीं न कहीं हार्ट के भीतर लम्बे समय से विद्यमान रहते हैं जिससे रोगी अनजान होता है। कार्डियक अरेस्ट होने पर अगर मरीज को तुरंत चिकित्सकीय सहायता मिल जाए तो जान बच सकती है। कई बार लोग कहते हैं कि रात में पार्टी में व्यक्ति डांस कर रहा था, स्वस्थ था और देर रात्रि कार्डियक अरेस्ट से मौत हो गई। कार्डियक अरेस्ट को सीधे शब्दों में कहें तो हार्ट बीट का अचानक रुक जाना है। दिल की धड़कन तभी रुकती है जब उसे आॅक्सीजन न मिले यानी मांसपेशियों को खून न मिले। ये अनियंत्रित जीवनशैली की वजह से होता है यानी धमनियों में आंशिक ब्लॉकेज लम्बे समय से आता जा रहा था, लक्षण एकदम से नहीं दिख रहे थे। सडन कार्डियक डेथ में 30 से 35 फीसदी लोगों की एकबार में ही मृत्यु हो जाती है क्योंकि हार्ट को हुत अधिक हानि होती है। सडन डेथ के रोगियों में कोलेस्ट्रोल व एलडीएल बढ़ना भी वजह होती है। ऐसे रोगियों के अचानक थकान भरा काम करने, स्ट्रेस आने से कार्डियक अरेस्ट हो जाता है।
दिल की पंपिंग से शुरू हो सकती है धड़कनें कार्डियक अरेस्ट में दिल कुछ समय के लिए रुकता है लेकिन बाद में धड़कन शुरू होने की संभावना होती है इसलिए अगर मरीज को सीने पर दबाव के जरिए दिल को पंप किया जाए [सीपीआर] तो संभव है कि मरीज की जान बच सके। ऐसी स्थिति में मरीज के सीने को 100 से 120 बार तक दबाना चाहिए और 30-30 बार दबाने के बाद मरीज की सांसें जांचते रहना चाहिए।


By : Sameer Banerjee

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